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*ABHIJEET RANE (AR)*

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यह खुशी की बात है कि महाराष्ट्र में जब भी विभागों का बंटवारा होगा तो उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को गृह विभाग की बजाय वित्त विभाग या फिर सिंचाई या ऐसा अन्य बुनियादी ढांचा विभाग मिल सकता है जो भाजपा को मदद कर सकता है। इससे अगले ढाई सालों में भाजपा यह दिखा सकती है कि राज्य में काम किस स्तर पर हुआ है।

 

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पासा पलट गया है। जैसे ही मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने राष्ट्रपति चुनाव को लेकर एक अहम बयान दिया कि वे राष्ट्रपति चुनाव के लिए द्रौपदी मुर्मू का पूरा समर्थन करेंगे। वैसे ही शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी मुर्मू को समर्थन देने का एलान कर दिया। ये सब राजनीति का कमाल है।

 

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लगता है कि शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे पर संजय राउत की चली नहीं। अगर किसी की चली तो शिवसेना के 18 सांसदों में से 13 की चली। जिन्होंने ठाकरे से राष्ट्रपति पद के लिए मुर्मू का समर्थन करने और भाजपा और पार्टी के एकनाथ शिंदे गुट के साथ संभावित सुलह का दरवाजा खोलने का अनुरोध किया था। एक ऐसी पार्टी में जहां ठाकरे से शायद ही कभी सवाल किया जाता है, शिवसेना अध्यक्ष को पिछले दिनों मिला एक सांसद का पत्र स्पष्ट संकेत था कि उनका प्रभाव घट रहा है और पार्टी के सदस्य अब खड़े होने और अपने मन की बात कहने से नहीं डरते हैं।

 

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शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे द्वारा राष्ट्रपति पद के लिए द्रोपदी मुर्मू का समर्थन करना ठाकरे की कमजोरी भी दर्शाता है। हाल के विद्रोह के बाद, ठाकरे वैसे भी एक पतली रेखा पर चल रहे हैं। और अपने सांसदों की भावनाओं की अवहेलना करने का कोई भी प्रयास दरार को व्यापक रूप से उजागर ही करेगा। इसे कहते हैं कि देर आयद दुरुस्त आयद।

 

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शिंदे सरकार के मंत्रिमंडल का विस्तार अभी थोड़े समय के लिए टल गया है। लेकिन यह शिंदे खेमे और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट के बीच चल रही कानूनी लड़ाई के कारण नहीं हुआ है बल्कि राष्ट्रपति चुनाव की वजह से क्योंकि विधायक राष्ट्रपति चुनाव में व्यस्त होंगे…तो शपथ ग्रहण करने का समय किसके पास होगा? अब जो भी होगा 18 के बाद होगा।

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